সোমবার, ফেব্রুয়ারি 24

राष्ट्रीय गीत: भारत की सांस्कृतिक पहचान

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राष्ट्रीय गीत का महत्व

भारतीय राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम्’ ना केवल एक संगीत रचना है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है। इसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखित किया था और इसकी संगीत रचना रविंद्रनाथ ठाकुर द्वारा की गई थी। यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में उभरा और आज भी हमारे देश की भावना और एकता को दर्शाता है।

इतिहास और उत्पत्ति

‘वन्दे मातरम्’ की उत्पत्ति 1882 में हुई जब बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इसे अपनी काव्य कृति ‘आनंदमठ’ में शामिल किया। यह गीत मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय इस गीत ने लोगों में प्रेरणा का संचार किया। इसे 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में गाया गया, जिसने इसे एक क्रांतिकारी गान बना दिया।

सरकारी मान्यता

1963 में, भारत सरकार ने इसे आधिकारिक राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी। हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त जैसे विशेष अवसरों पर इसे गाना आवश्यक होता है, जिससे यह परंपरा और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन गया है। यह गीत ना केवल भारत की महानता को दर्शाता है, बल्कि यह देश के सभी नागरिकों के लिए गर्व का प्रतीक भी है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम्’ आज भारत के समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यह हमें एकजुट करने और हमारे देश के प्रति प्रेम एवं श्रद्धा की भावना को बढ़ावा देने में सहायक है। आने वाले वर्षों में इस गीत का महत्व और बढ़ने की संभावना है, क्योंकि यह न केवल एक ऐतिहासिक गान है, बल्कि हमारी राष्ट्रीय पहचान का भी प्रतीक है।

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