রবিবার, আগস্ট 17

राष्ट्रगान: हमारी संस्कृति और पहचान का प्रतीक

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राष्ट्रगान का महत्व

राष्ट्रगान, हमारे देश की पहचान और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें एकता, अखंडता और देशभक्ति के विचारों से जोड़ता है। भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ को 24 जनवरी 1950 को आधिकारिक रूप से भारत के राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया। इस गान की रचना गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने की थी और यह हिंदी, बांग्ला और उर्दू के तत्वों का समावेश करता है।

राष्ट्रगान के प्रसंग

राष्ट्रगान का उद्देश्य न केवल भारतवासियों में देशभक्ति की भावना जगाना है, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय इतिहास और विकास की ओर भी एक दृष्टि प्रदान करता है। इसे हर राष्ट्रीय समारोह, स्कूलों में, और अन्य आधिकारिक कार्यक्रमों में गाया जाता है। राष्ट्रगान गाने के समय सभी व्यक्तियों से खड़े होने की अपेक्षा की जाती है, जिससे इसकी महिमा को सम्मान मिलता है।

राष्ट्रगान की संरचना

‘जन गण मन’ की संरचना सुनियोजित और गहरे भावनात्मक अनुभवों से भरी हुई है। इसके पहले कुछ बोल एक सामूहिक एकता की भावना को चित्रित करते हैं, जबकि अन्य बोल भारतीय विविधता और एकता का प्रतीक हैं। इसके हर बोल में भारत के अलग-अलग हिस्सों और उनकी संस्कृति का सम्मान है।

राष्ट्रगान का स्थान और प्रभाव

राष्ट्रगान केवल एक गान नहीं है, बल्कि यह भारतीय नागरिकों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक है जो हमें हमारे देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों की याद दिलाता है। इसके प्रभाव से लोग एकजुट होते हैं और एक साझा पहचान का अनुभव करते हैं। यह गान हमें एक दूसरे से जोड़ता है, चाहे हम किसी भी भाषा या संस्कृति के क्यों न हों।

निष्कर्ष

राष्ट्रगान ना केवल हमारे देश का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे राष्ट्र की एकता और अखंडता की पहचान भी है। यह हमें प्रेरित करता है और हमें अपने देश की सेवा करने के लिए प्रेरणा देता है। हम सभी को इसे सम्मानपूर्वक गाने और सुनने की जरूरत है, ताकि यह भावना हमेशा जीवित रहे।

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