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मनरेगा: ग्रामीण विकास और रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्तंभ

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मनरेगा का परिचय

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) भारत सरकार द्वारा 2005 में लागू किया गया था। यह अधिनियम ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी रोजगार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से создан किया गया था। मनरेगा का मकसद न केवल ग्रामीण गरीबों को रोजगार प्रदान करना है, बल्कि उनकी जीवन स्थिति को भी सुधारना है।

मनरेगा की उपलब्धियाँ

मनरेगा ने पिछले कुछ वर्षों में अनेक उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस योजना के तहत भारत के 600 ग्रामीण जिलों में लाखों लोगों को रोजगार मिला है। जब से मनरेगा लागू हुआ है, ग्रामीण मजदूरों की आय में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी जीवनयात्रा में सुधार आया है।

कोविड-19 के बाद की स्थिति

कोविड-19 महामारी के बाद, मनरेगा को और भी अधिक महत्व मिला है। मजदूरों की बेरोजगारी बढ़ने के कारण, मनरेगा ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फिर से अस्तित्व में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2020-21 में इस योजना के अंतर्गत 11 करोड़ काम किए गए, जो पिछले वर्षों की तुलना में एक उच्च आंकड़ा है।

भविष्य की चुनौतियाँ और सुधार

हालांकि मनरेगा ने काफी सकारात्मक प्रभाव डाला है, लेकिन इस योजना को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कुछ क्षेत्रों में भ्रष्टाचार, उचित वेतन का न मिलना और कार्यस्थल पर सुरक्षा की कमी जैसी समस्याएँ हैं। सरकार को चाहिए कि वह इन समस्याओं को दूर करने के लिए सख्ती से कदम उठाए और योजना का एकीकरण करें जिससे कि मनरेगा का लाभ अधिक लोगों तक पहुंच सके।

निष्कर्ष

मनरेगा एक बहु-आयामी विकास योजना है, जो ग्रामीण भारत में न केवल रोजगार प्रदान करती है, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का भी एक साधन है। इसके वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रभाव ने इसे न केवल एक सरकारी योजना, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन में बदल दिया है। आगे आने वाले समय में इसका सही प्रयोग और निगरानी ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की नई ऊँचाइयों को छूने में सहायक हो सकता है।

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