শনিবার, জুন 7

ईद उल-अधा: बलिदान का पर्व और उसकी परंपराएँ

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ईद उल-अधा का महत्व

ईद उल-अधा, जिसे बकरी ईद भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्यौहार है। यह त्यौहार इस्लाम के दूसरे मूल स्तंभ, कुरबानी, का प्रतीक है। यह त्यौहार हिजरी कैलेंडर के अनुसार दसवें दिन मनाया जाता है, जो इब्राहीम की अल्लाह के प्रति निष्ठा और बलिदान की कहानी को याद करता है। यह न केवल दसवें हिज्री के सर्वोच्च पर्वों में से एक है, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है।

त्यौहार के रिवाज

ईद उल-अधा को एक सप्ताह पहले से त्यौहार के लिए तैयारी शुरू होती है। मुस्लिम समुदाय में लोग बकरा, गाय या भेड़ की खरीदारी करते हैं, जिन्हें बाद में अल्लाह की राह में कुरबान किया जाता है।

त्यौहार के दिन सुबह की प्रार्थना के बाद लोग ईदगाह या मस्जिद में एकत्र होते हैं। इसके बाद बकरी या अन्य जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी का मांस 3 भागों में बांटा जाता है: एक भाग परिवार के लिए, एक भाग दोस्तों और पड़ोसियों के लिए, और एक भाग गरीबों और जरूरतमंदों के लिए। यह इस भाव को दर्शाता है कि सभी के साथ बांटने से समाज में सहानुभूति और समानता बढ़ती है।

COVID-19 के प्रभाव

2020 से 2023 तक COVID-19 महामारी के कारण, ईद उल-अधा के समारोह में कई बदलाव हुआ है। कई देशों में सरकारों ने भीड़ जुटाने और सामूहिक प्रार्थनाओं पर प्रतिबंध लगाया था। हालांकि, इस साल स्थिति में सुधार हुआ है और लोग फिर से अपनी पारंपरिक रिवाजों को मनाने के लिए उत्साहित हैं।

संक्षेप में

ईद उल-अधा केवल एक धार्मिक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह मानवता, त्याग और एकता का प्रतीक भी है। यह निश्चित रूप से हमारे समाज में समानता और भाईचारे की भावना को बल देता है। इस वर्ष के समारोहों में एक नई जीवन शक्ति है, और यह हमें याद दिलाता है कि कठिनाइयों के बावजूद, हम मिलकर सामना कर सकते हैं।

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