বৃহস্পতিবার, এপ্রিল 24

मुरलीकांत पेटकर: भारत के पहले पैरा एथलीट की कहानी

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मुरलीकांत पेटकर: प्रेरणा का स्त्रोत

मुरलीकांत पेटकर, भारतीय पैरा एथलेटिक्स के पितामह माने जाते हैं। उनका जीवन और उपलब्धियाँ न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रेरणा का स्त्रोत हैं। 1970 के दशक में एक दुर्घटना के बाद मुरलीकांत ने अपनी एक टांग गवां दी थी। लेकिन इस कठिनाई ने उनके जज़्बे को कमजोर नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने अपने आप को पैरा एथलेटिक्स में समर्पित कर दिया।

खेल में योगदान

मुरलीकांत पेटकर ने 1978 और 1986 में एशियाई पैरा खेलों में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया, और कई मेडल जीते। वह पहले ऐसे एथलीट थे जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया। उनके द्वारा जीते गए मेडल्स ने न केवल उनकी मेहनत को दर्शाया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि शारीरिक चुनौतियों का सामना करने में आत्मविश्वास और संघर्ष का कोई विकल्प नहीं है।

समाज में प्रभाव

मुरलीकांत पेटकर का योगदान खेल की दुनिया तक ही सीमित नहीं रहा। वे आज भी युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करके पैरा एथलीटों को प्रोत्साहित किया है। उन्होंने सरकार से भी अपील की है कि वे पैरा खेलों के लिए अधिक संसाधन और अवसर प्रदान करें। उनका मानना है कि जितनी अधिक सुविधाएं मिलेगी, उतनी ही अधिक प्रतिभाएँ आगे आएँगी।

निष्कर्ष

मुरलीकांत पेटकर का जीवन कहानी है संघर्ष और सफलता की। वह न केवल खुद को बल्कि पूरे देश को प्रेरणा देते हैं। भविष्य में, जब हम पैरा एथलीटों की बात करेंगे, तो मुरलीकांत पेटकर का नाम हमेशा लिया जाएगा। उनके कार्य और संघर्ष ने यह साबित किया है कि मेहनत और लगन से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

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