বৃহস্পতিবার, সেপ্টেম্বর 25

माँ कुशमंडा: नवरात्रि के विशेष दिन की महिमा

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माँ कुशमंडा का महत्व

भारत में धार्मिक आस्था और परंपराएं गहरे जड़ें जमाए हुए हैं। नवरात्रि के दौरान, देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इनमें से एक रूप माँ कुशमंडा हैं, जिनकी पूजा विशेष रूप से तीसरे दिन की जाती है। माँ कुशमंडा को समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक मानते हैं।

माँ कुशमंडा की पूजा

माँ कुशमंडा को ‘कुश’ (घास) और ‘अमंड’ (अंडा) के रूप में वर्णित किया जाता है, जो समस्त सृष्टि के रचनाकार माने जाते हैं। माँ की पूजा करते समय भक्त विशेष रूप से उनकी कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं, ताकि जीवन में सभी समस्याओं का समाधान हो। इस दिन उपासक नेवास सिद्धि की प्राप्ति के लिए 108 दीप जलाते हैं और विशेष देवी मंत्रों का जाप करते हैं।

कार्यक्रम और उत्सव

इस दिन बहुत से मंदिरों में खास कार्यक्रम होते हैं। भक्तजन माँ की आरती करते हैं और प्रसाद के रूप में फल-फूल अर्पण करते हैं। उत्तर भारत के कई हिस्सों में इस दिन गरबे और डांडिया का आयोजन भी होता है, जिसमें लोग एकत्र होकर खुशी मनाते हैं। साथ ही देवी के प्रति अपना प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

महत्व और भविष्यवाणी

माँ कुशमंडा की उपासना से भक्तों को अनेक लाभ होते हैं। मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से माँ की पूजा करता है, उसे सफलता, संपन्नता और मानसिक शांति प्राप्त होती है। नवरात्रि के इस समय में युवा और साधक सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, जो आने वाले दिनों में समाज में एकता और प्रेम की भावना को बढ़ाते हैं।

अतः माँ कुशमंडा का पूजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोन से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह नवरात्रि के दौरान विश्वास और एकजुटता को बढ़ाता है।

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