भारत में चीता: विलुप्ति और पुनःस्थापना का सफर

चीता: पर्यावरण की महत्वपूर्ण कड़ी
चीता एक अद्भुत और तेज़ धावक है, जो अपने विशेष गुणों के लिए प्रसिद्ध है। यह चीता, अब से कुछ समय पहले तक, भारत के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का मुख्य अंग माना जाता था। लेकिन, 1952 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया था। चीता की विलुप्ति ने जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव डाला, और इसके पुनःस्थापन की आवश्यकता महसूस की जाने लगी।
पुनःस्थापना के प्रयास
भारत सरकार ने 2020 में चीता पुन:स्थापना योजना की शुरुआत की। नवीतम आंकड़ों के अनुसार, 72 साल बाद चीता को भारत में दोबारा लाने का प्रयास किया जा रहा है। मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 12 अफ्रीकी चीतों को भारत लाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। यह योजना कौबाई और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक माध्यम भी है।
चुनौतियाँ और आगे का मार्ग
हालांकि, चीता पुनःस्थापना का यह प्रयास चुनौतियों से भरा हुआ है। नई प्रजातियों के लिए उपयुक्त आवास तैयार करना, उन्हें उचित भोजन प्रदान करना और स्थानीय पारिस्थितिकी के साथ समायोजन करना आवश्यक है। वन्यजीव संरक्षण आयोग के अनुसार, प्रभावित क्षेत्र की निगरानी और संरक्षण को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष: भविष्य के प्रति उम्मीद
चीता की वापसी न केवल भारतीय वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने के लिए भी आवश्यक है। यदि पुनःस्थापना सफल होती है, तो यह अन्य विलुप्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक मॉडल बन सकता है। भारत में चीतों की वापसी का सफर एक नई hope की किरण है, जो हमें जैव विविधता और पारिस्थितिकी के महत्व को समझाता है।


