বৃহস্পতিবার, সেপ্টেম্বর 11

आरती: प्राचीन परंपरा से आधुनिक आध्यात्मिकता तक का सफर

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परिचय

आरती हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा विधि है, जिसमें कपूर, घी या तेल से जलती ज्योति को देवताओं के सामने घुमाया जाता है। यह हिंदू धर्म की सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय विधियों में से एक है, जो देवताओं के प्रति कृतज्ञता और प्रार्थना का एक पवित्र समारोह है।

ऐतिहासिक महत्व और वर्तमान प्रासंगिकता

आरती का उल्लेख सबसे पहले स्कंद पुराण में मिलता है, और इसकी उत्पत्ति प्राचीन वैदिक अग्नि यज्ञों से मानी जाती है। वर्तमान में हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के अंत में आरती का विशेष महत्व है, जिसमें दिशा, दीपक और धुन का एक निश्चित महत्व होता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है।

आरती का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलू

आरती करते समय दिशा का विशेष महत्व है। वास्तु के अनुसार, पूर्व दिशा को देवताओं की दिशा माना गया है, और यह सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।

आधुनिक समय में आरती का महत्व

आज भी, अधिकांश हिंदू मंदिरों में दिन में पांच बार आरती की जाती है, और हिंदू परिवार अपने घरों में प्रातः और सायं दो बार आरती करते हैं। आरती का अर्थ संदर्भ के अनुसार अलग-अलग हो सकता है – बुजुर्गों के लिए सम्मान, देवताओं के लिए प्रार्थना, और घरों या वाहनों के लिए आशीर्वाद का प्रतीक।

निष्कर्ष

आज के समय में, चाहे मंदिरों में हो, घरों में या पवित्र स्थलों पर, आरती भक्तों को दैवीय शक्ति से जुड़ने, आंतरिक शांति प्राप्त करने और अपने जीवन में दैवीय उपस्थिति का अनुभव करने का पवित्र अवसर प्रदान करती है। यह हिंदू आध्यात्मिकता की एक ऐसी प्रथा है जो दुनिया भर के लाखों अनुयायियों के लिए गहरा महत्व रखती है।

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