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2025 में बढ़ता जेनोफोबिया: वैश्विक चुनौती के रूप में उभरता नस्लीय भेदभाव और विदेशी विरोध

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परिचय

जेनोफोबिया, नस्लवाद और धार्मिक असहिष्णुता पर आधारित हिंसक चरमपंथ कई देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन गया है। इन घटनाओं में नस्लवाद, मिसोजनी, जेनोफोबिया, यहूदी विरोध और अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुता जैसी समान विचारधाराएं दिखाई देती हैं।

वर्तमान स्थिति

कुछ देशों में यह बढ़ता खतरा सरकारी संरचनाओं और संस्थागत अधिकारियों के खिलाफ हिंसा के रूप में सामने आया है। इन समूहों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और अन्य ऑनलाइन टूल्स का उपयोग अपनी पहुंच बढ़ाने, धन जुटाने और प्रभाव बढ़ाने के लिए किया है।

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर राज्यों से नस्लीय श्रेष्ठता पर आधारित विचारों के प्रसार को रोकने और नस्लवादी घृणा भाषण तथा जेनोफोबिक भाषण से प्रभावी ढंग से निपटने का आह्वान किया है।

प्रभाव और चुनौतियां

जेनोफोबिया के प्रमुख परिणामों में सामाजिक बहिष्कार, समूह से बचना, बहिष्कारवादी स्वास्थ्य नीतियों का समर्थन, और रोगाणु विरोध शामिल हैं। विभिन्न प्रवासी समुदाय, विशेष रूप से एशियाई, अफ्रीकी और लैटिनो लोग नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं। बीमारी की संवेदनशीलता, चिकित्सा अविश्वास, व्यक्तिवाद और सामूहिकता जैसे कारक जेनोफोबिया से जुड़े हैं।

समाधान की दिशा में प्रयास

विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकारों को सार्वजनिक पहुंच का विस्तार करना चाहिए, सहिष्णुता को बढ़ावा देना चाहिए और घृणा भाषण का मुकाबला करना चाहिए। साथ ही घृणा अपराधों की जांच और अभियोजन में तेजी लानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र की नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय संधि के तहत सरकारों को नस्लीय भेदभाव के खिलाफ राष्ट्रीय कार्य योजनाएं अपनाने की सिफारिश की गई है।

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