বুধবার, মার্চ 12

होलिका दहन: रंगों और समर्पण का पर्व

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होलिका दहन का महत्व

होलिका दहन, जो भारत में हर साल फाल्गुन महीने में मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन से जुड़ी कथा प्रचलित है कि कैसे भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा के लिए होलिका का वध किया था। इस जश्न का आयोजन पूरे देश में भव्यता के साथ किया जाता है, और इसके साथ रंगीन समारोहों और मेला का आयोजन होता है।

समारोह का आयोजन

हर साल होलिका दहन से पहले, लोग सगाई और मित्रों के साथ एकत्र होकर होलिका के अलाव की तैयारी करते हैं। पहले शाम को होलिका दहन के आयोजन के लिए लकड़ियों और घास का ढेर जमा किया जाता है। इस अलाव के चारों ओर लोग इकट्ठा होते हैं और अपनी बुराइयों को जलाने की प्रार्थना करते हैं। जब अलाव जलता है, तो लोग उस पर पुष्प अर्पित करके पूजा-अर्चना करते हैं। यह अनुष्ठान बुराई पर जीत का प्रतीक है।

समाज में संदेश

होलिका दहन का त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। इस दिन लोग आपसी मतभेदों को भुलाकर एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशी मनाते हैं। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि सच्चाई और अच्छाई हमेशा बुराई को पराजित करेंगी। इस अवसर पर लोग अपने प्रियजनों के साथ एकत्र होकर एक-दूसरे पर रंग डालते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं।

निष्कर्ष

होलिका दहन का पर्व हमारे समाज में एकता और सौहार्द का संदेश फैलाता है, जो हमें यह सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की विजय हमेशा महत्वपूर्ण है। इस पर्व को मनाने का अर्थ है सकारात्मकता और प्रेम का संदेश फैलाना। आगामी होलिका दहन पर हर कोई इस सन्देश को अपने जीवन में उतारें और मिलकर इस त्योहार का आनंद लें।

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