সোমবার, মে 12

सैम मानेकशॉ: एक प्रेरणादायक सैन्य नेता

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प्रस्तावना

सैम मानेकशॉ, जो भारतीय सेना के प्रमुख जनरलों में से एक रहे हैं, ने भारतीय सेना को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। उनके समर्पण, नेतृत्व और रणनीतिक सोच ने उन्हें एक उत्कृष्ट सैन्य नेता बना दिया। 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध और इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का उदय, उनके करियर के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक थे।

सैन्य करियर

सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को हुआ था। उन्होंने 1934 में भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। द्वितीय विश्व युद्ध में उनकी भूमिका ने उन्हें बड़ी पहचान दिलाई। मानेकशॉ ने 1970 के दशक में भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ का पद संभाला और ऐसे समय में देश का नेतृत्व किया जब तेज़ी से फैलते खतरों का सामना करना आवश्यक था।

1971 का युद्ध

1971 में, पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ गया, जिससे बांग्लादेश का जन्म हुआ। मानेकशॉ ने अपनी उत्कृष्ट रणनीतिक सोच और योजनाबद्ध नेतृत्व के लिए पूरी दुनिया की प्रशंसा प्राप्त की। उनकी अगुवाई में, भारतीय सेना ने केवल 13 दिनों में पाकिस्तान को हराया, जिससे भारतीय शांति और विजय का एक नया अध्याय शुरू हुआ।

विरासत और सम्मान

सैम मानेकशॉ को 1973 में भारत के पहले फ़ील्ड मार्शल के रूप में सम्मानित किया गया। उनकी विरासत केवल सैन्य रणनीति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे एक प्रेरणादायक नेता के रूप में भी याद किए जाते हैं। भारतीय सशस्त्र बलों के प्रति उनकी निष्ठा और भारतीय जनता के प्रति उनकी संवेदनशीलता ने उन्हें एक आदर्श नेता बना दिया।

निष्कर्ष

सैम मानेकशॉ का जीवन और करियर एक प्रेरणा साबित होते हैं। उनका योगदान न केवल सैन्य क्षेत्र में, बल्कि राष्ट्रनिर्माण में भी महत्वपूर्ण है। उनकी सोच और दृष्टिकोण आज भी भारतीय सेना और युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। उनके कार्यों को न केवल भारतीय इतिहास में, बल्कि शांति और स्वतंत्रता के सच्चे नायक के रूप में स्वीकार किया जाएगा।

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