বুধবার, অক্টোবর 8

शनि प्रदोष व्रत कथा: महत्व और उपासना विधि

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शनि प्रदोष व्रत का महत्व

शनि प्रदोष व्रत Hindu धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो हर महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान शिव और शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी दुख-दर्द समाप्त होते हैं।

शनि प्रदोष व्रत की कथा

शनि प्रदोष व्रत की कथा पुराणों में वर्णित है। एक बार एक पापी व्यापारी भगवान शिव के चरणों में गया। वह हमेशा धन के पीछे दौड़ता था और अपनी बुरी आदतों के कारण बुरे कर्मों में लिप्त था। उसकी पत्नी ने उसे समझाया कि उसे भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। उसने प्रदोष के दिन उपवास करने का निर्णय लिया।

उसने श्रद्धा के साथ उपवास रखा और रात को शिवलिंग का अभिषेक किया। भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने व्यापारी को बताया कि उसके कारण ही उसके जीवन में बुराइयाँ आई हैं। व्यापारी ने भगवान शिव से क्षमा मांगी। शिवजी ने उसे आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत करेगा, वह शांति और समृद्धि प्राप्त करेगा। व्यापारी ने अपने सभी पापों से मुक्ति पाई।

शनि प्रदोष व्रत कैसे करें

शनि प्रदोष व्रत रखने के लिए श्रद्धालुओं को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करें और सफेद वस्त्र पहनें। दिनभर उपवासी रहना चाहिए और संध्या के समय शिवलिंग का पूजन करना चाहिए। पूजा में गाय के दूध, जल, बेलपत्र और भस्म का उपयोग करें। रात में उबले हुए चने का भोग अर्पित करें।

निष्कर्ष

शनि प्रदोष व्रत एक प्रभावशाली व्रत है जो इस दिन करने से न केवल शनि की कृपा प्राप्त होती है बल्कि मन की शांति और समृद्धि भी आती है। इस दिन पूजा और उपवास करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं। इस व्रत की कथा हमें सही रास्ते पर चलने और भगवान शिव की कृपा पाने के लिए प्रेरित करती है।

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