भारत में मानसून: कृषि और जलवायु पर प्रभाव

मानसून का परिचय
भारत में मानसून हर वर्ष एक महत्वपूर्ण मौसम प्रक्रिया है, जो देश के कृषि एवं जलवायु को प्रभावित करता है। यह वार्षिक बारिश का मुख्य स्रोत है जो भारतीय उपमहाद्वीप में मार्च से सितंबर तक सक्रिय रहता है। मानसून के आगमन से न केवल फसलों की सिंचाई होती है, बल्कि यह जल संकट के समाधान में भी मदद करता है।
मानसून का प्रभाव
इस वर्ष (2023) मानसून ने भारत में अपनी उपस्थिति से कई राज्यों में सुखद बारिश का अनुभव दिया है, जो सामान्य से ऊपर है। भारतीय मौसम विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, जुलाई के पहले सप्ताह में ही देश भर में बारिश ने द्रव्यमान में वृद्धि दर्ज की है। यह किसानों के लिए एक राहत की बात है, खासकर उन क्षेत्रों में जो सूखे का सामना कर रहे थे।
कृषि में योगदान
मानसून के समय बारिश की मात्रा न केवल फसलों की उपज को बढ़ाती है, बल्कि यह मृदा की उपजाऊ क्षमता को भी सुधारती है। धान, गेंहू, और मक्का जैसी अनाज फसलों के लिए मानसून का सही समय पर आना अत्यंत आवश्यक है। इस वर्ष का मानसून, विशेषकर दक्षिणी भारत में, किसानों को फसल कटाई के लिए आवश्यक पानी प्रदान करने में सहायक रहा है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
हालांकि, जलवायु परिवर्तन भी मानसून के पैटर्न को प्रभावित कर सकता है। पिछले कुछ वर्षों में मौसम के पैटर्न में बदलाव देखा गया है, जैसे कि बारिश में अंसतुलन और अचानक बाढ़ जो नुकसानदायक साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ये प्रवृत्तियाँ जारी रहीं, तो भविष्य में कृषि उत्पादकता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष
भारत में मानसून का मौसम सिर्फ बारिश नहीं लाता, बल्कि यह समग्र अर्थव्यवस्था और कृषि पर भी गहरा प्रभाव डालता है। यदि हम मानसून के पैटर्न को बेहतर ढंग से समझें और जलवायु परिवर्तनों का सामना करने के लिए उपाय अपनाएँ, तो कृषि उत्पादन को बनाए रखने के साथ-साथ जल संकट को भी नियंत्रित किया जा सकता है।