বৃহস্পতিবার, আগস্ট 14

भारत में भूस्खलन: हाल के रुझान और घटनाएँ

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भूस्खलन का महत्व और प्रासंगिकता

भारत में भूस्खलन, विशेषकर वर्षा ऋतु के दौरान, एक गंभीर प्राकृतिक आपदा बन गई है। यह घटनाएं न केवल जीवन को खतरे में डालती हैं, बल्कि संपत्ति और जलवायु पर भी गहरा प्रभाव डालती हैं। हाल के वर्षों में, भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि और अव्यवस्थित शहरीकरण ने इस समस्या को बढ़ा दिया है।

हाल की घटनाएँ

जुलाई 2023 में, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में एक बड़ा भूस्खलन हुआ, जिसमें 30 से अधिक लोग मारे गए और कई अन्य घायल हुए। इस भूस्खलन के कारण कई सड़कें बाधित हो गईं और स्थानीय लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया गया। इसके अतिरिक्त, जुलाई के अंत में, उत्तराखंड में भी दो प्रमुख भूस्खलन की घटनाएँ देखने को मिलीं, जिससे यातायात पूरी तरह से ठप हो गया।

कारण और प्रभाव

भूस्खलन के मुख्य कारणों में भारी वर्षा, भूवैज्ञानिक संरचनाओं का कमजोर होना, और मानव गतिविधियाँ शामिल हैं। प्राकृतिक रूप से, जब मिट्टी की व्युत्पत्ति में पानी की मात्रा बढ़ जाती है, तो मिट्टी अपने सुदृढ़ता खो देती है और खिसकने लगती है। मानव निर्मित गतिविधियों जैसे निर्माण कार्य और वनों की कटाई भी भूस्खलन के खतरे को बढ़ाते हैं।

भविष्य की संभावनाएँ और जागरूकता

भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारें लगातार प्रयास कर रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि प्राथमिकता के आधार पर अवसंरचनात्मक परियोजनाओं की योजना बनाई जानी चाहिए ताकि अगले मानसून के दौरान भूस्खलन की घटनाओं को रोकने में मदद मिले। इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि लोग भूस्खलन के संकेतों को पहचान सकें।

निष्कर्ष

भूस्खलन एक जटिल समस्या है जो केवल प्राकृतिक तत्वों के कारण नहीं होती, बल्कि मानव व्यवहार भी इसके लिए जिम्मेदार है। भारत में, जहां भूस्खलन से होने वाली क्षति की आवृत्ति बढ़ रही है, यह आवश्यक है कि हम एक प्रभावी रणनीति अपनाएं और अपनी जिम्मेदारियों को समझें।

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