মঙ্গলবার, আগস্ট 19

बांके बिहारी: भक्ति और आस्था का प्रतीक

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बांके बिहारी का महत्व

बांके बिहारी, भगवान कृष्ण के एक प्रसिद्ध स्वरूप हैं, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में श्रद्धेय हैं। उनकी पूजा और भक्ति न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विशेष रूप से वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर, भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर हर साल लाखों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो यहां अपनी आस्था को अभिव्यक्त करने के लिए आते हैं।

बांके बिहारी मंदिर की विशेषताएँ

बांके बिहारी मंदिर का निर्माण 1864 में हुआ था और यह गोस्वामी श्रीजी महाराज द्वारा स्थापित किया गया था। मंदिर की वास्तुकला और इसकी अद्वितीय छवि को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। बांके बिहारी जी की प्रतिमा एक लुंगी पहनकर है, जो भक्तों को उनमें विशेष आकर्षण देती है। यहां रोजाना भक्त राधा-कृष्ण की आरती करते हैं, और यह भक्तिमय वातावरण पूरे परिसर में व्याप्त होता है।

वर्तमान में बांके बिहारी की भक्ति

आजकल, विशेष रूप से त्योहारों के दौरान, बांके बिहारी को समर्पित कई समारोह आयोजित किए जाते हैं। जन्माष्टमी, राधाष्टमी और अन्य विशेष अवसरों पर भक्तजन बड़ी संख्‍या में यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं। इस वर्ष जन्माष्टमी पर मंदिर में राष्ट्रपति और कई प्रमुख व्यक्तियों का आगमन हुआ था।

निष्कर्ष

बांके बिहारी की भक्ति केवल धार्मिक आस्था का ही विषय नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। यह हमें प्रेम, करुणा और समर्पण की भावना सिखाता है। आने वाले वर्षों में, बांके बिहारी मंदिर और भी भक्ति और श्रद्धा का केंद्र बना रहेगा, और न केवल भारत से, बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों से लोग यहां आकर भगवान के दर्शन करेंगे।

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