বুধবার, মে 21

फील्ड मार्शल: भारतीय सेना की ऐतिहासिक वैज्ञानिकता

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फील्ड मार्शल का महत्व

फील्ड मार्शल का पद भारतीय सेना में सर्वोच्च और प्रतिष्ठित है। यह एक ऐसा शीर्ष स्तर का पद है जो केवल विशेष और महान सैन्य नेताओं को प्रदान किया जाता है। फील्ड मार्शल का सम्मान और जिम्मेदारी केवल उनकी सैन्य क्षमताओं में नहीं, बल्कि उनके द्वारा देश के प्रति किए गए उत्कृष्ट सेवाओं के लिए भी होता है। यह पद भारतीय इतिहास में कुछ ही बार दिया गया है, जिनमें फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा और जनरल आदित्य वर्मा शामिल हैं।

फील्ड मार्शल का इतिहास

भारतीय सेना ने फील्ड मार्शल का पद 1950 में स्थापित किया, जब फील्ड मार्शल करिअप्पा को इस पद से सम्मानित किया गया। इसके बाद फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को 1973 में यह सम्मान मिला, जब उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, सिस्टम के अनुसार यह पद इतना प्रतिष्ठित और अनोखा है कि इसे अधिकतम दो सदस्य ही प्राप्त कर चुके हैं।

फील्ड मार्शल का कार्य और जिम्मेदारियाँ

फील्ड मार्शल को उच्चतम सैन्य नेतृत्व के तहत सम्पूर्ण सेना के संचालन और व्यवस्था की निगरानी का काम सौंपा जाता है। उनकी रणनीतिक निर्णय क्षमता और ज्ञान के बल पर ही सेना की दिशा निर्धारित होती है। यह पद कई भूमिकाओं को दर्शाता है, जिसमें चर्चाओं की नेतृत्व करना, उच्चतम सैन्य रणनीतियों को तैयार करना और सैनिकों की प्रेरणा शामिल है।

निष्कर्ष

फील्ड मार्शल का पद न केवल भारतीय सेना के लिए, बल्कि देश की संप्रभुता और सैन्य बल के प्रतीक का काम करता है। देश में यह पद अमूल्य महत्व रखता है और यह दर्शाता है कि भारतीय सेना कितनी संगठित और समर्पित है। भविष्य में इस पद को किसी योग्य और प्रभावशाली सैन्य नेता को देने की आशा की जाती है, जो देश की सेवा में अविस्मरणीय योगदान दे सके।

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