निरजला एकादशी के व्रत की कथा और महत्व

निरजला एकादशी का परिचय
निरजला एकादशी, जिसे ‘जलहिन एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु उपवास रखते हैं, जिसमें न केवल भोजन से बल्कि जल से भी व्रत रखा जाता है। इस व्रत का पालन करना साधकों के लिए विशेष पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
निरजला एकादशी की कथा
कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब कथित रूप से भीष्म पितामह ने सभी एकादशियों के व्रतों का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को तीव्र तपस्वी होना है, उन्हें निरजला एकादशी का व्रत रखना चाहिए।
कथा में यह वर्णित है कि एक बार राजा युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा कि सबसे कठिन व्रत कौन सा है। श्री कृष्ण ने उन्हें निरजला एकादशी के व्रत का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि जो भक्त इस दिन अपनी इच्छाओं को त्याग कर उपवास रखता है, वह सभी पापों से मुक्त होता है और स्वर्ग की प्राप्ति करता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था और उसकी पत्नी निरजला एकादशी का व्रत रखना चाहती थी। ब्राह्मण ने उसे गलत समझते हुए ऐसा करने से मना किया। लेकिन पत्नी ने अपनी दृढ़ता से व्रत रखा और इस तरीके से उन दोनों ने अपने सारे पापों से मुक्ति प्राप्त की।
निष्कर्ष
निरजला एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व केवल त्याग और तपस्या में नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा और विश्वास की अटूट शक्ति का प्रतीक भी है। इस दिन भक्तजन अपने मन को शांत करते हैं और भगवान से अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। इस विशेष दिन का पालन करने से न केवल भक्तों को पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि यह उनके जीवन में शांति और समृद्धि भी लाता है। इस प्रकार, निरजला एकादशी व्रत की कथा और इसका अनुसरण करना जीवन के आध्यात्मिक मार्ग में एक महत्वपूर्ण कदम है।