चंद्र ग्रहण 2025: वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व से जुड़ी दुर्लभ खगोलीय घटना

एक ऐतिहासिक खगोलीय घटना
7 सितंबर 2025 को होने वाला चंद्र ग्रहण 122 वर्षों में पहली बार पितृ पक्ष के पहले दिन पड़ रहा है। इस दौरान शनि और बृहस्पति का शक्तिशाली योग भी बन रहा है, जो इस घटना को खगोलीय और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है।
समय और अवधि
ग्रहण का आरंभ 7 सितंबर को रात 8:58 बजे से होगा। आंशिक ग्रहण रात 9:57 बजे से दिखाई देगा। पूर्ण ग्रहण रात 11:01 बजे से शुरू होगा, जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया से पूरी तरह ढक जाएगा और गहरे लाल रंग का दिखेगा। पूर्ण ग्रहण 8 सितंबर को रात 12:23 बजे समाप्त होगा।
वैज्ञानिक महत्व
वैज्ञानिक इस दौरान चंद्रमा के रंग में बदलाव का अध्ययन करेंगे, जिससे पृथ्वी के वायुमंडल, धूल के स्तर और प्रदूषकों की जानकारी मिलेगी। चंद्रमा की लाल आभा सूर्य के प्रकाश के वायुमंडलीय धूल और कणों से छनने का परिणाम है।
आध्यात्मिक महत्व और परंपराएं
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, ग्रहण काल में खाने-पीने और सोने से बचना चाहिए। यह समय आध्यात्मिक साधना, मंत्र जाप और ध्यान के लिए विशेष माना जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा के दौरान होने वाला यह ग्रहण पितृ पक्ष के साथ संयोग के कारण विशेष महत्व रखता है। ग्रहण के बाद शुद्धिकरण विधि, दान और प्रार्थना करने की सलाह दी जाती है। गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है। परंपरागत अनुष्ठानों में उपवास, पितरों के लिए श्राद्ध कर्म, और आध्यात्मिक केंद्रितता बनाए रखना शामिल है।
वैश्विक महत्व
यह चंद्र ग्रहण एशिया, अफ्रीका, अमेरिका और ओशिनिया में 7 अरब से अधिक लोगों को दिखाई देगा। खगोल प्रेमियों, फोटोग्राफरों और आकाश दर्शकों के लिए यह एक अविस्मरणीय दृश्य होगा। यह हाल के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाले पूर्ण चंद्र ग्रहणों में से एक है, जिसकी कुल अवधि 5 घंटे से अधिक है। इसे बिना किसी दूरबीन, फिल्टर या सुरक्षात्मक चश्मे के सीधे देखा जा सकता है।