শুক্রবার, আগস্ট 15

कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव

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कृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व

कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे गोवर्धन पूजा के साथ मनाया जाता है, हर साल हिंदी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में विशेष महत्व रखता है। भक्तों के लिए यह दिन विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक उत्सव का प्रतीक है, जिसमें वे उपवास रखते हैं और रातभर जागरण कर भजन-कीर्तन करते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी के आयोजन

इस दिन विभिन्न स्थानों पर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। भक्त विशेष रूप से राधा-कृष्ण की मूर्तियों को सजाते हैं और उनकी आराधना करते हैं। देशभर में इस अवसर पर रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिसमें नृत्य, नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं। मथुरा और वृंदावन, जहाँ भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, इस पर्व का केंद्र माना जाता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं।

समाज पर प्रभाव

कृष्ण जन्माष्टमी न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व भक्ति, प्रेम और समर्पण का संदेश फैलाता है। इस दिन, लोग एक-दूसरे से मेल-मिलाप करते हैं और भाईचारे को बढ़ावा देते हैं। बच्चों के लिए, यह अवसर खास होता है, क्योंकि वे कृष्ण की लीलाओं को नाटक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

निष्कर्ष

कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर भावनाएं और श्रद्धा हर साल बढ़ती जा रही हैं। यह पर्व हमें न केवल भगवान कृष्ण की शिक्षाओं को याद दिलाता है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों को भी मजबूत करता है। ऐसे में, इस पर्व की अद्भुत परंपरा और महत्व को देखना व समझना हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है। आने वाले वर्षों में, इस पर्व का आयोजन और भी धूमधाम से मनाया जाएगा, जो नई पीढ़ी को भक्ति और संस्कार की ओर निर्देशित करेगा।

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