ओबीसी आरक्षण: राज्यों में नया मोड़, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से उम्मीदें
ओबीसी आरक्षण: वर्तमान स्थिति
मध्य प्रदेश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई होने वाली है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस आरक्षण को सुरक्षित करने की प्रतिबद्धता दोहराई है, और सुप्रीम कोर्ट 22 सितंबर, 2025 से दैनिक सुनवाई शुरू करेगा।
राज्यों में विकास
राजस्थान में, ओबीसी आयोग पंचायती राज और शहरी निकाय चुनावों में आरक्षण पर अपनी सिफारिशें तीन महीने के भीतर प्रस्तुत करेगा। आयोग ओबीसी परिवारों का सर्वेक्षण कर रहा है और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार संस्थानों से परामर्श कर रहा है।
पश्चिम बंगाल में, सुप्रीम कोर्ट 77 समुदायों के ओबीसी दर्जे को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा। ये समुदाय मुख्य रूप से मुस्लिम समुदायों से हैं, जिन्हें सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के कारण ओबीसी लाभ मिलता रहा है।
कानूनी पहलू और भविष्य की दिशा
मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर, सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में (इंदिरा साहनी केस) क्रीमी लेयर के बहिष्करण के अधीन ओबीसी के लिए 27% आरक्षण को बरकरार रखा। क्रीमी लेयर एक ऐसी अवधारणा है जो ओबीसी आरक्षण लाभों की सीमा तय करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ओबीसी का दर्जा केवल सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन पर आधारित होना चाहिए, न कि धर्म पर। राज्य सरकारों का तर्क है कि उनके पास अपने विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के आधार पर ओबीसी स्थिति तय करने की शक्ति होनी चाहिए। राजनीतिक और सामाजिक समूहों को चिंता है कि ओबीसी का दर्जा हटाने से इन समुदायों की शैक्षिक और रोजगार के अवसरों तक पहुंच प्रभावित हो सकती है।