সোমবার, জুন 30

ओप्पनहाइमर: एक वैज्ञानिक की कहानी

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परिचय

रॉबर्ट ओप्पनहाइमर, जिसे आमतौर पर परमाणु बम के ‘पिता’ के रूप में जाना जाता है, ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने काम से अमेरिका और विज्ञान दोनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया। उनके योगदान ने न केवल युद्ध का दिशा बदला, बल्कि वैश्विक राजनीति और अनुसंधान में भी गहरा प्रभाव डाला।

उद्भव और शिक्षा

ओप्पनहाइमर का जन्म 22 अप्रैल 1904 को न्यूयॉर्क शहर में हुआ था। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। बाद में, वह कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में भौतिकी के प्रोफेसर बने।

मैनहट्टन प्रोजेक्ट

1942 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ओप्पनहाइमर को मैनहट्टन प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया। इस परियोजना का उद्देश्य अमेरिका के लिए पहला परमाणु बम विकसित करना था। उनके नेतृत्व में लैब ने न्यू मैक्सिको के लॉस आलमोस में ‘लॉस आलामोस राष्ट्रीय प्रयोगशाला’ का निर्माण किया। यहां काम करने वाली वैज्ञानिक टीमों ने 16 जुलाई 1945 को पहला सफल परीक्षण, जिसका नाम ‘ट्रिनिटी’ रखा गया, किया।

परमाणु ऊर्जा के प्रभाव

युद्ध के अंत में, ओप्पनहाइमर ने हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी के बाद परमाणु ऊर्जा के उपयोग के संबंध में गंभीर चिंताएं व्यक्त कीं। वे स्वयं को ‘विज्ञान की जिम्मेदारी’ के बारे में सोचने के लिए प्रेरित महसूस करते थे। उन्होंने निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण का समर्थन किया, जिससे उनकी छवि एक वैज्ञानिक से अधिक एक नैतिकता और चिंतनशील व्यक्ति के रूप में स्थापित हुई।

निष्कर्ष

रॉबर्ट ओप्पनहाइमर के योगदान ने न केवल विज्ञान में महत्वपूर्ण उन्नति की, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि विज्ञान का उपयोग कितनी जिम्मेदारी और नैतिकता के साथ करना चाहिए। उनका जीवन और कार्य आज के वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है। आगे चलकर, हम ओप्पनहाइमर जैसे व्यक्तित्वों से सीख सकते हैं कि विज्ञान और मानवता के बीच का संबंध कितना गहरा और महत्वपूर्ण है।

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