अहोई अष्टमी की कथा: महत्व और अर्थ

अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का पर्व भारत में विशेष रूप से माताओं द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली के 8 दिन पूर्व आता है, और इसे खासकर उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन माताएँ अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए उपवास रखती हैं। इस पर्व पर जो विशेष पूजा विधि अपनाई जाती है, उसका मूल उद्देश्य है कि माताएं अपने बच्चों के लिए सुख व समृद्धि की कामना करती हैं।
अहोई अष्टामी की कथा
अहोई अष्टमी की कथा बहुत पुरानी है। कथानक के अनुसार, एक बार एक ब्राह्मणी अपने पुत्र की लंबी उम्र के लिए कठिन उपवास कर रही थी। उन्होंने अपने पुत्र के जीवन को बचाने हेतु कठिन तप किया। एक दिन, ब्राह्मण का पुत्र जंगल में खेलते समय एक हिरण से परेशान हो गया। हिरण को देखकर उसकी मां ने अपने पुत्र को धीरे-धीरे उससे दूरी बनाने की सलाह दी, लेकिन बच्चा हिरण के करीब चला गया। यह देख, हिरण उससे दूर भाग गया और रास्ते में उसे एक शिकारी ने पकड़ लिया। जब ब्राह्मण की पत्नी ने यह सुना, तब उन्होंने अपने कठिन तप के जरिए अपने पुत्र को बचाने का निर्णय लिया। इसके बाद, अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए, उन्होंने अपने पुत्र की उम्र को बढ़ाने के लिए अहोई माता को प्रसन्न किया। अंत में, माता ने उनकी प्रार्थना सुनकर उनके पुत्र को जीवनदान दिया। इस दिन को माताएं खास विधि से मनाते हैं और अपने पुत्रों के लिए पूजा करती हैं।
सारांश
अहोई अष्टमी की कथा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माताओं की श्रद्धा और त्याग का परिचायक है। यह दिन उन्हें अपने बच्चों की भलाई के लिए एकजुट होने का अवसर प्रदान करता है। इस विशेष दिन पर माता-पिताओं की कर्तव्यपरायणता को मान्यता मिलती है, और आने वाली पीढ़ियों को अपने अनुग्रह और आशीर्वादों से संजोने की प्रेरणा मिलती है। इस प्रकार, अहोई अष्टमी न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह एक सामाजिक बंधन और मातृ शक्ति का प्रतीक भी है।