মঙ্গলবার, জুলাই 1

राष्ट्रगान: भारतीय संस्कृति का प्रतीक

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राष्ट्रगान का महत्व

राष्ट्रगान, जिसे ‘जन गण मन’ के नाम से जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और एकता का प्रतीक है। यह गान सिर्फ एक संगीत रचना नहीं बल्कि एक ऐसा संदेश है जो पूरे देश की विविधता और महानता को दर्शाता है। ‘जन गण मन’ को 24 जनवरी 1950 को भारत के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था।

इतिहास और रचना

राष्ट्रगान के शब्दों की रचना भारतीय कवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1911 में की थी। ये शब्द भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों और अंगों की एकता का संदेश देते हैं। इसे पहली बार कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था, जब यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना।

राष्ट्रगान का गाने का महत्व

राष्ट्रगान का गाना हमें एकता और गर्व का अनुभव कराता है। यह न केवल विशेष राष्ट्रीय समारोहों, जैसे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर गाया जाता है, बल्कि स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में भी इसका अभिवादन किया जाता है। यह भारतीय नागरिकों के बीच एकजुटता का भाव जगाता है और देशप्रेम की भावना को प्रबल करता है।

वर्तमान संदर्भ में राष्ट्रगान

समाज में आजकल राष्ट्रगान का गाना न केवल एक परंपरा बन गया है, बल्कि इसके माध्यम से हम अपने देश के प्रति सम्मान और प्रेम भी व्यक्त करते हैं। जब भी यह गान गाया जाता है, हर कोई खड़ा होकर अपनी श्रद्धांजलि देता है। यह एक सामान्य नागरिक को अपने देश के प्रति जुड़ाव और सच्चे सम्मान की भावना को जागृत करता है।

निष्कर्ष

राष्ट्रगान सिर्फ एक गान नहीं है, बल्कि यह हमारे देश की आत्मा है। यह हमें अपने देश के प्रति गर्व और जिम्मेदारी का एहसास कराता है। आने वाले समय में, इसकी महत्ता और भी बढ़ेगी, क्योंकि यह न केवल हमें एकजुट करता है, बल्कि हमें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को याद दिलाता है। इसलिए, राष्ट्रगान गाने का अवसर हमारे लिए गर्व और संजीवनी का अवसर होना चाहिए।

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